पाठशाला भीतर और बाहर |अंक‑3
Azim Premji University,
Abstract
पाठशाला भीतर और बाहर का तीसरा अंक स्कूली शिक्षा के दो महत्त्वपूर्ण सरोकारों पर चर्चा व विश्लेषण करता हैं- रटन्त पढ़ाई का मसला और सही मायने में सीखने का सवाल। शारीरिक दण्ड के ऐतिहासिक और दार्शनिक आयामों पर भी इसमें एक लेख शामिल है। इस अंक में कुछ अनुभव आधारित लेख भी हैं जिनमें एक ग्रामीण परिस्थितियों में शिक्षक की निर्मिति पर, एक स्कूल हेडमास्टर की यादों पर और एक इस बात से सम्बन्धित है कि हम बच्चों को कितना समझते हैं। भारत में शिक्षा के विकास पर लेख की ऋंखला इस अंक में भी जारी है क्योंकि इसमें यात्रा के एक महत्त्वपूर्ण कालखंड के अध्ययन को प्रस्तुत किया गया है। हर अंक की तरह इस अंक में भी शिक्षकों से साक्षात्कार और पुस्तक चर्चा जैसे स्थाई स्तम्भ शामिल हैं।