समुदाय के सामाजिक ताने-बाने में स्कूलों का एकीकरण

द्वारा: रितिका गुप्ता ; अनुवादक: नलिनी रावल | Apr 30, 2019

गवर्नमेंट मॉडल प्राइमरी स्कूल (जीएमपीएस), मूनाकोट ब्लॉक, पिथौरागढ़ के छात्रों को हर दिन स्कूल जाने के लिए पथरीले, पहाड़ी इलाकों के रास्तों से गुज़रना पड़ता है, जिसमें अस्थिर परछाइयाँ इधर-उधर डोलती रहती हैं क्योंकि सुनहरा सूरज बिना थके बादलों के साथ लुका-छिपी खेलता रहता है।

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शिक्षक: चंद्र शेखर शर्मा
स्कूल: गवर्नमेंट मॉडल प्राइमरी स्कूल, पिथौरागढ़, उत्तराखंड

This is a translation of the article originally written in English.

समुदाय

गवर्नमेंट मॉडल प्राइमरी स्कूल (जीएमपीएस), मूनाकोट ब्लॉक, पिथौरागढ़ के छात्रों को हर दिन स्कूल जाने के लिए पथरीले, पहाड़ी इलाकों के रास्तों से गुज़रना पड़ता है, जिसमें अस्थिर परछाइयाँ इधर-उधर डोलती रहती हैं क्योंकि सुनहरा सूरज बिना थके बादलों के साथ लुका-छिपी खेलता रहता है। यह स्कूल मुख्य रूप से पास के तीन गाँवों के लिए है। वैसे पड़ोस के अन्य गाँवों के कुछ छात्र भी यहाँ पढ़ने आते हैं हालाँकि वहाँ भी उनके लिए प्राथमिक विद्यालय हैं। ये बच्चे अपने दादा-दादी के साथ रहते हैं जो बच्चों की स्कूल की पढ़ाई के लिए इस स्कूल के पास रहने के लिए आ गए हैं।

स्कूल में सामुदायिक भावना पर जोर देते हुए सहायक शिक्षक चंद्र शेखर शर्मा ने कहा कि स्कूल जाति और धर्म से परे एक समावेशी स्थान होता है I स्कूल में संपन्न व कुलीन परिवारों के छात्रों के साथ में सरकारी कर्मचारियों के परिवार, सेना में कार्यरत माता-पिता और गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले छात्र भी होते हैं। शेखर शर्मा का मानना​है कि शिक्षकों ने समानता का जो दृष्टिकोण (प्रत्येक बच्चे को भगवान का बच्चा’ मानना) अपनाया है, उसे छात्रों ने भी आत्मसात किया है और उसके कारण लोगों के दिमाग से जाति की भावना को धुंधला करने में मदद मिली है।

विद्यालय

नीचे वाली सड़क से स्कूल नहीं दिखाई देता है; जब हम दोनों तरफ झाड़ियों से भरी सड़क से होते हुए पहाड़ी पर चढ़ते हैं तो स्कूल की छोटी गुलाबी इमारत नज़र आने लगती है। स्कूल की कुछ दीवारों पर सूक्तियाँ लिखी हुई हैं जैसे कि चीजें बदलती नहीं हैं, हम उन्हें बदलते हैं,’ और आत्म विश्वास सफलता की पहली सीढ़ी है’ आदि तो अन्य दीवारों पर स्कूल के छात्रों के नन्हें हाथों के निशान दिखाई देते हैं। भवन में तीन कक्षा कक्ष हैं- एक कमरा नर्सरी के लिए; दूसरा कमरा दूसरी और तीसरी कक्षा के लिए तथा चौथी और पाँचवीं के लिए तीसरा कमरा काम में लाया जाता है।

• स्कूल में कराए जाने वाले दिलचस्प क्रियाकलाप

  • प्रार्थना सभा के दौरान स्थानीय समाचार’

लगभग आठ छात्र सुबह की प्रार्थना सभा में आगे आते हैं और एक-एक करके स्थानीय समाचारों’ की एक पंक्ति सुनाते हैं जिसमें उनके अपने घरों के नवीनतम समाचार होते हैं! जैसे:

आखिरकार आज मेरे दादाजी घर से बाहर निकले’

आज हम दीवाली के लिए सामान खरीदने जाएँगे’

कल मेरे भाई का जन्मदिन था, माँ ने स्वादिष्ट मटन पकाया!

प्रति माह होने वाला जो चाहो, वही करो शुक्रवार’ कार्यक्रम

इस शुक्रवार को छात्र उन गतिविधियों को करते हैं जिन्हें वे करना चाहते हैं। शेखर शर्मा का मानना​है कि छात्रों को यह मौका देने से उन्हें अपनी शिक्षा के साथ और अधिक गहन रूप से जुड़ने में मदद मिलती है तथा उनकी रुचियाँ भी जीवित रहती हैं।

शिक्षक को गढ़ने वाली परिस्थितियाँ

सहायक शिक्षक शेखर शर्मा स्कूल में मध्याह्न भोजन और स्वच्छता कार्यक्रमों के समन्वयक भी हैं। वे 2006 से इस स्कूल में काम कर रहे हैं और पहले भी अन्य स्कूलों में विज्ञान शिक्षक और प्रधानाचार्य के पद पर रह चुके हैं। वे अपने माता-पिता और भाई के परिवार के साथ रहते हैं। उनके छोटे भाई अपना एक निजी स्कूल चलाते हैं जिसमें उनके परिवार के तीन सदस्य कार्य करते हैं।

अतीत में शेखर शर्मा ने तरह-तरह के कार्य किए जैसे ठेकेदारी, महाजनी और गैर सरकारी संगठनों के साथ छोटे-छोटे प्रोजेक्ट करना आदि; उन्होंने कुछ समय के लिए अपने परिवार द्वारा संचालित स्कूल का प्रबंधन भी किया। यहीं पर शायद स्कूल चलाने के लिए उनके जुनून और कौशल दोनों की नींव पड़ी। उनके इस अनुभव के साथ हीं उनके पिता के द्वारा उनपर शिक्षा में डिग्री हासिल करने (उन्होंने 2006 में शारीरिक शिक्षा, BPEd में डिग्री हासिल की ) के दबाब ने उन्हें वर्तमान पद पर पहुँचाया। एक बार स्कूल में आ जाने के बाद शेखर शर्मा ने महसूस किया कि अब पीछे मुड़कर नहीं देखना है; वे यही तो करना चाहते थे! इससे प्रेरित होकर उन्होंने शिक्षा में एमए (पत्राचार के माध्यम से) तथा शिक्षा विभाग द्वारा प्रदान की जाने वाली विशेष बीटीसी (बेसिक टीचिंग सर्टिफिकेट) का कोर्स किया।

व्यक्तित्व और सक्षम बनाने वाले कारक

शेखर शर्मा एक मजबूत लेकिन सौहार्दपूर्ण व्यक्तित्व के धनी होने के साथ साथ मिलनसार भी हैं जिसने उन्हें न केवल समुदाय के साथ अच्छे संबंध बनाने में सक्षम किया है, बल्कि अन्य संगठनों और गैर‑सरकारी संगठनों के साथ नेटवर्क बनाने में भी मदद की है। इस स्कूल के लिए मैं किसी के सामने हाथ फ़ैलाने से

झिझकता नहीं हूँ, चाहे वे मेरे दोस्त हों या एनजीओ क्षेत्र के लोग हों, मैं हर तरह इस स्कूल के लिए मैं मदद माँगता हूँ।

अपने पारस्परिक कौशल’ के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि जबसे उन्हें याद है, तब से उनके भीतर एक जोश था, भले ही उन्होंने कोई भी कार्य चुना हो; वे हमेशा एक नेता और प्रभावशाली व्यक्ति रहे। उन्हें कुछ अनोखा और प्रभावपूर्ण कार्य करने का शौक है। शेखर शर्मा लोगों को अपने साथ लेकर चलने में विश्वास रखते हैं। उनके स्वभाव और कार्यों ने हमेशा लोगों को उनकी ओर आकर्षित किया है, वे अपने इस कौशल के आभारी हैं। वे कहते हैं कि उन्हें समुदाय के लिए काम करने से खुशी मिलती है। शायद इसीलिए वे समुदाय के साथ इस तरह से मजबूती से जुड़ने में सक्षम हुए हैं। वे ध्यान (मेडिटेशन) के माध्यम से आंतरिक ऊर्जा भी प्राप्त करते हैं और श्री राम चंद्र मिशन के एक सक्रिय सदस्य हैं।

शेखर शर्मा अपने इस विकास का श्रेय तत्कालीन मुख्य शिक्षिका सुश्री कलादी को देते हैं कि उन्होंने स्कूल में नए-नए आए शेखर शर्मा को कार्य करने के अनेक अवसर दिए। उन्होंने बताया कि कलादी ने उनमें कुछ कर गुज़रने का जोश देखा और उन्होंने हमेशा शेखर शर्मा की सहायता की और उनका उत्साह बढ़ाया। उन्हें सभी प्रशिक्षणों और कार्यशालाओं में इस विश्वास के साथ भेजा गया था कि वे कुछ महत्वपूर्ण करने में सक्षम हैं। वे कहते हैं कि साथी सहयोगियों ने भी उनकी सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और स्कूल की त्वरित वृद्धि का श्रेय वे अपने सहयोगियों को देते हैं जिन्होंने उनके जोश और प्रेरणा को साझा किया। मुझे अच्छे अवसर मिले, इसीलिए मैं आज यहाँ तक आ पहुँचा हूँ।’

परिवार के निजी स्कूल को चलाने का उनका अनुभव, ऐसी नौकरियाँ जिन्होंने उनके नेटवर्किंग कौशल का निर्माण किया और हर तरह से सहयोग करने वाले परिवार ने उन्हें समुदाय की रचनात्मक भागीदारी का निर्माण करने में सक्षम बनाया और

स्कूल प्रबंधन के लिए नागरिक समाज संगठनों और स्थानीय सरकार के प्रतिनिधियों के साथ नेटवर्किंग में भी मदद मिली।

अच्छे क्रियाकलाप जिनसे स्कूल का निर्माण हुआ

जब वे इस विद्यालय में आए तब वह अधिक प्रतिष्ठित नहीं था; वहाँ नामांकन बहुत कम था और लगता था कि लोगों के मन में स्कूल को लेकर कुछ पूर्व धारणाएँ हैं।

समुदाय के सदस्यों का विश्वास प्राप्त करना

सोच बदलने के लिए मेहनत बहुत ज़रूरी है, लोगों का विश्वास जीतना होता है’। शेखर शर्मा ने समुदाय की ज़रूरतों की समझ को प्राथमिकता दी। स्कूल के काम करने के साथ‑साथ उन्होंने समुदाय के सदस्यों की उनके अन्य कामों में भी मदद की जैसे बीपीओ (गरीबी रेखा से नीचे) कार्ड भरने के लिए आवश्यक दस्तावेज जुटाना, उनके लिए पासपोर्ट साइज़ के चित्र क्लिक करना और छापना आदि। इन छोटी-छोटी बातों से सद्भावना का विकास हुआ और उनके प्रति समुदाय के सदस्यों का विश्वास बढ़ा। उन्होंने इन कार्यों को करते समय स्कूल के खिलाफ लोगों की शिकायतों के बारे में जानकारी हासिल की। उनके कार्य, फीडबैक और स्कूल में समुदाय के सदस्यों को हितधारक मानना – इन सब बातों से समुदाय की नज़र में उनके बारे में सकारात्मक धारणा बनी।

शिक्षा के तीन स्तंभ हैं: विद्यार्थी, शिक्षक और समाज। यदि हम समाज को शिक्षा के साथ नहीं जोड़ेंगे तो मुझे नहीं लगता कि हम बच्चों का सर्वांगीण विकास कर पाएँगे। इसलिए मैंने सोचा कि समाज को विद्यालय में लाया जाए और उनको हर गतिविधि में शामिल किया जाए।”

• दृश्यमान परिणाम प्राप्त करना

शेखर शर्मा ने कुछ ऐसे कार्यों को प्राथमिकता दी जो, उनके अनुसार, समुदाय को दिखाई दें ताकि विश्वास और नामांकन में वृद्धि हो। उनका मानना​था कि एक बार ऐसा हो जाए तो उसके बाद शिक्षण पद्धति और अन्य अभ्यासों में बदलाव करना आसान हो जाएगा। ऐसा करने से धीरे-धीरे छात्रों की संख्या 16 से 53 हो गई।

  • पब्लिक स्कूलों की आकर्षक विशेषताओं को अपनाना: समुदाय के सदस्यों से बात करते समय शेखर शर्मा को यह बात समझ में आई कि पब्लिक स्कूलों की कुछ विशेषताएँ लोगों को अच्छी लगती हैं। उन्होंने इन विशेषताओं जीएमपीएस में अपनाया। उन्होंने स्कूल की वर्दी में टाई को शामिल किया जिससे छात्र और भी स्मार्ट दिखने लगे; मध्याह्न भोजन को लंच’ कहना शुरू किया और अंग्रेजी के शिक्षण पर ध्यान केंद्रित किया।
  • प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता: शिक्षकों ने छात्रों को विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए प्रशिक्षित करना शुरू किया। दो छात्रों के नवोदय स्कूलों में चयनित होने के बाद एक पब्लिक स्कूल के सभी छात्र जीएमपीएस में दाखिल हो गए जिसके कारण 2011 में वह पब्लिक स्कूल बंद कर दिया गया। इसके बाद 2016 में एक अन्य पब्लिक स्कूल भी बंद हो गया।
  • छात्रों की दृश्यता में वृद्धि: जिला और राज्य स्तर पर खेल, गणित और सामान्य ज्ञान की प्रतियोगिताओं में छात्रों की भागीदारी ने उनके आत्मविश्वास और संप्रेषण क्षमताओं का निर्माण किया। शेखर शर्मा के अनुसार जब छात्र स्कूल के बाहर बातचीत करते हैं तो समुदाय के अन्य लोग उन्हें देखते हैं और स्कूल को भी लाभ होता है।
  • स्वच्छता: स्कूल में अपनी और परिवेश की स्वच्छता और स्वास्थ्या-रक्षा को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित किया गया है। इसके लिए ज़ोरदार प्रयास किए गए हैं जैसे कूड़ेदान के उपयोग को प्रोत्साहित करना, बच्चों को प्रोत्साहन देने के लिए प्रतिदिन सबसे अच्छी तरह से वर्दी पहनकर आने वाले छात्र, वर्ष के

अंत में सबसे साफ‑सुथरे छात्र और सर्वाधिक उपस्थिति वाले छात्र को पुरस्कृत करना आदि।

  • समुदाय का निर्माण करना: जब छात्र देखते हैं कि उनके लिए कितना कुछ किया जा रहा है तो वे भी स्कूल के कल्याण/विकास में भाग लेते हैं। उदाहरण के लिए जब स्कूल की बैठक बुलाई जाती है तो छात्र इस बात पर ज़ोर देते हैं कि उनके माता-पिता उसमें उपस्थित हों। वे भी चाहते हैं कि उनके माता-पिता स्कूल प्रणाली का हिस्सा बनें।
  • कक्षा प्रबंधन: यदि बच्चे को विद्यालय में अच्छा माहौल मिलेगा, उसको डर नहीं लगेगा तो वह खुशी-खुशी स्कूल आएगा। हम बच्चों से कहते हैं कि अगर तुम्हारा होमवर्क नहीं हुआ है या तुम सीख नहीं पाए हो तो कोई बात नहीं, तुम फिर भी स्कूल आओ, तुम्हें कोई नहीं डाँटेगा।’ शेखर शर्मा का मानना है कि डर पैदा करके शिक्षा नहीं देनी चाहिए। सीखने के लिए एक सुरक्षित स्थान की आवश्यकता होती है और प्रोत्साहन से छात्रों के आत्म‑सम्मान और आत्मविश्वास के विकास में मदद मिलती है। इसके अलावा उनका मानना है कि छात्र अवलोकन करके सीखते हैं और इसलिए शिक्षक को आदर्श एवं अनुकरणीय व्यक्ति होना चाहिए।

• शिक्षण पद्धति

स्कूल में जो अच्छे अभ्यास देखने में आए वे बच्चे की क्षमता और सीखने की गति के आधार पर केंद्रित थे। उदाहरण के लिए प्रत्येक कक्षा में एक एक्सेल शीट थी जिस पर छात्रों के नाम और उस सेमेस्टर के दौरान सीखे जाने वाले कौशल लिखे हुए थे। चूँकि विभिन्न छात्रों द्वारा विषयों को समझने के लिए अलग-अलग समय लगता है, इसलिए कक्षा में उन्हें उनकी आवश्यकता के अनुसार प्रत्येक विषय के लिए पर्याप्त समय दिया जाता हैI अपनी प्रगति के अनुसार छात्र के नाम के आगे पहले सही का एक निशान फिर दूसरा निशान और कौशल में महारत

हासिल करने के बाद तीसरा निशान लगाया जाता है। इसलिए एक दिन में कक्षा में बच्चे ने जो कुछ किया, वह उसके चार्ट पर आंशिक रूप से निर्भर था।

छात्र/छात्रा का नामA‑Zफूलों के नामफलों के नाममहीनेसंबंध/रिश्तेलेखनगिनती
राघव✔✔✔✔✔✔
नेहा✔✔✔✔✔✔✔✔

सफलताओं के संकेत

  • सभी छात्रों की 90% औसत उपस्थिति।
  • सबसे स्वच्छ स्कूल’ का पुरस्कार
  • तीन बार जिले के सर्वश्रेष्ठ विद्यालय’ का पुरस्कार।
  • शेखर शर्मा ने 2017 में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक’ का राज्यपाल पुरस्कार प्राप्त किया।
  • दो बार सर्वश्रेष्ठ विद्यालय समिति’ का पुरस्कार।
  • जवाहर, नवोदय और हिम ज्योति स्कूलों में 15 से अधिक छात्रों को प्रवेश मिला।
  • शेखर शर्मा की नेटवर्किंग के कारण विभिन्न संगठनों और गैर सरकारी संगठनों के साथ जुड़ाव संभव हुआ। गूंज द्वारा 11 बच्चों के लिए स्कूल की सामग्री, तकनीकी सहायता, किताबें, जूते, बैग आदि की व्यवस्था की जाती है और वे रचनात्मक गतिविधियों का संचालन करने और मार्गदर्शन देने के लिए भी स्कूल में जाते हैं। गूंज ने पाँच छात्रों को दिल्ली जाने और सांस्कृतिक आदान‑प्रदान कार्यक्रम के तहत देश के विभिन्न अन्य हिस्सों के छात्रों के साथ बातचीत करने का अवसर प्रदान किया।

सामने आने वाली चुनौतियाँ

एक शिक्षक के लिए समाज का दर्पण बने रहना सबसे बड़ी चुनौती है’। शेखर शर्मा ने बताया कि उनके मार्ग की सबसे बड़ी रुकावट यह थी कि ज़्यादातर लोग उन्हें एक ऐसा नौसिखिया मानते थे जो बहुत उद्यमी और सक्रिय होने के साथ‑साथ भव्य योजनाओं को निष्पादित करना चाहता था; लेकिन फिर भी वे सभी यह शर्त लगाते थे कि कुछ समय बाद वे भी एक औसत दर्जे के शिक्षक बनकर रह जाएँगे। लोग कहा करते कि नया मुर्गा प्यासा आता है’ (एक नया कर्मचारी हमेशा प्यासा आता है)।

सरकारी स्कूलों के बारे में समुदाय का दृष्टिकोण भी प्रतिकूल था। उनका मानना था कि छात्र केवल मध्याह्न भोजन के लिए स्कूल जाते हैं और अंग्रेजी बोलना नहीं सीख सकते हैं।

यह भी देखा गया कि जिन छात्रों के माता-पिता उनके साथ बातचीत करते थे और उनके स्कूल की गतिविधियों में रुचि लेते थे, वे स्कूल के क्रियाकलापों में बहुत आगे थे बनिस्पत उन छात्रों के जिनके माता-पिता काम में व्यस्त रहते थे और अपने बच्चों के साथ समय नहीं बिताते थे। कुछ बच्चे काफी दूर रहते हैं, मार्ग जोखिम भरा है और दो किलोमीटर की सीधी चढ़ाई है; इसलिए कुछ छोटे बच्चे यात्रा करने के लिए इंटर कॉलेज के बड़े बच्चों पर निर्भर रहते हैं।

अंत में, एक सतत चुनौती यह है कि उन्हें अपने समाज के प्रतिनिधि के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखने और उसके विश्वास और भरोसा को बनाए रखने का प्रयास निरंतर करते रहना पड़ता है।

वे अभ्यास जिन्हें अन्य शिक्षक अपना सकते हैं

स्कूल में सक्रिय हितधारक के रूप में समुदाय को शामिल करने के लिए अपनाई गई रणनीतियाँ प्रभावशाली हैं। शेखर शर्मा माता-पिता के मन में स्कूल के प्रति विश्वास और जिम्मेदारी की भावना पैदा करने में कामयाब रहे हैं। इसके लिए उन्होंने उनके साथ निरंतर संवाद कायम ायमे हैं लिए स्कूल जाते हैं और किया, शिकायत कक्ष स्थापित कि, ऐसे काम कियें जो सबको साफ नज़र आता है और स्कूल में एक एंकर बिंदु के रूप में सेवा करते रहें जिनपर लोग भरोसा करते हैं।

स्कूल में ड्रॉपआउट दर कम करने के प्रयास के तहत माता-पिता से बच्चों के स्कूल छोड़ने के कारणों के बारे में बात करके उन्हें स्कूली शिक्षा के लाभों के बारे में बताया गया। प्रायः जो छात्र स्कूल छोड़ने की कगार पर होते हैं, स्कूल उनकी कई तरह से मदद कर सकता है। उदाहरण के लिए:

– पिथौरागढ़ शहर से स्कूल आने वाली शिक्षक वैन में कुछ छात्रों को लाया जाता है क्योंकि वे स्वयं स्कूल तक आने में असमर्थ हैं।

– जो छात्र स्कूल की वर्दी, किताबें या स्कूल की अन्य सामग्री नहीं जुटा सकते, उन्हें एक सहायक संगठन द्वारा ये चीज़ें मुहैया कराई जाती हैं।

– छात्रों के सीखने की गति के अंतर को ध्यान में रखने से उन्हें धीमी या तेज गति से सीखने के अवसर प्राप्त होते हैं तथा बोरियत या अरुचि के कारण स्कूल छोड़ने वालों की संख्या कम होती है।

शिक्षकों का अभिप्रेरण: शेखर शर्मा का मानना​है कि कुछ लोगों के लिए समुदाय के लिए कुछ कर गुजरने का जुनून और प्रेरणा तथा बदलाव लाने के लिए कार्य करना सहज व स्वाभाविक होता है। लेकिन बाकी लोगों की प्रेरणा रूपी चिंगारी को गतिशील नेतृत्व द्वारा हवा दी जा सकती है। कई बार जब शिक्षक किए जाने वाले कार्यों के वांछनीय परिणाम देखते हैं तो वे भी कार्य करने के लिए प्रेरित होते हैं। उनका मानना​है कि शिक्षक भी शिक्षार्थी हैं और अवलोकन व समीक्षा करके सीखने की निरंतर इच्छा बहुत उपयोगी है। अन्य शिक्षकों और स्कूलों से सीखने में कोई शर्म नहीं होनी चाहिए।

माता-पिता के साथ बातचीत

स्कूल में दूसरी, चौथी और पाँचवीं कक्षा के छात्रों के चार अभिभावकों (पुरुष) को आमंत्रित किया गया था। इनमें से एक की बेटी स्कूल से उत्तीर्ण हो गई थी और उसे नवोदय विद्यालय में प्रवेश मिल गया था तथा उनका बेटा अभी पाँचवीं कक्षा में पढ़ रहा था। अभिभावकों ने महीने में एक बार आयोजित होने वाले पीटीएम के अपने अनुभव सुनाए। यह बैठक स्कूल द्वारा महत्वपूर्ण घोषणाओं के साथ शुरू होती है और फिर माता-पिता की शिकायतों की सुनवाई होती है, उनकी समस्याओं का समाधान किया जाता है और बाद में यह एक सामुदायिक सम्मेलन बन जाता है जिसमें लोग मिलजुल कर अल्पाहार लेते हैं, आपस में घुलते-मिलते हैं और इस प्रकार एक साथ समय बिताने से यह भावना पुष्ट होती है कि स्कूल एक विशाल परिवार है।

माता-पिता ने स्कूल से संतुष्ट होने के लिए निम्नलिखित कारण व्यक्त किए:

• शिक्षकों के प्रेरणा स्तर को देखकर उन्हें यह महसूस होता है कि उनके बच्चे की शिक्षा के लिए ईमानदारी के साथ प्रयास किए जा रहे हैं और इसलिए वे भी उतनी ही भागीदारी के साथ जुड़ने के लिए प्रोत्साहित होते हैं।

• स्कूल में एक ख़ुशी का माहौल है जो हर किसी के उत्साह को बढ़ा सकता है। दो अभिभावकों ने बताया कि कई माता-पिता जब किसी मुश्किल भरे दिन का सामना कर रहे होते हैं तो अक्सर स्कूल जाते हैं ताकि उनका मन हल्का हो जाए। इस प्रकार स्कूल ने ना केवल बच्चे की शिक्षा का स्थान होने की भूमिका निभाई बल्कि वह माता-पिता के जीवन में भी प्रयोजनकारी सिद्ध हुआ।

• स्कूल द्वारा प्राप्त मूर्त और दृश्यमान परिणाम स्कूल में उनके विश्वास को मजबूत करते हैं जैसे छात्रों को मिलने वाले अवसर, अनुशासन के मूल्य, स्वच्छता और छात्रों का आत्मविश्वासपूर्ण प्रदर्शन । सभी अभिभावकों ने कहा कि यदि कोई बाज़ार में बच्चों के किसी समूह को देखे तो यह बताना बहुत आसान है कि कौन से बच्चे जीएमपीएस में पढ़ने जाते हैं क्योंकि इन बच्चों की तो बात ही निराली है।

ऐसा लग रहा था कि इस स्कूल ने अभिभावकों को न केवल अपने बच्चों के बारे में बल्कि अपने बारे में बात करने के लिए भी एक मंच प्रदान किया है। इसने उन्हें अभिव्यक्ति और विचार‑विनिमय के लिए जगह दी और इसलिए अभिभावकों ने माता-पिता की बैठकों को कार्य’ के रूप में देखने के बजाय मिलन संध्या’ के रूप में देखा। सभी ने विभिन्न रूपो में स्कूल की तुलना घर’ से की; कुछ ने कहा कि स्कूल उनके घरों का ही विस्तारित रूप है जहाँ वे बिना किसी बाधा के खुद को अभिव्यक्त कर सकते हैं जबकि कुछ ने स्कूल में गर्मजोशी से किए जाने स्वागत को देखकर कहा कि यह एकदम घर जैसा लगता है, यहाँ अपनापन है, आराम है, यहाँ हम खुलकर अपनी समस्या बता सकते हैं।

कुछ विचार

ऐसा लगता है कि विद्यालय के सफलता’ प्राप्त करने के अनेको मार्ग हैं, और विभिन्न स्कूलों के लिए इस सफलता’ के संकेतक भिन्न हो सकते हैं। कुछ स्कूलों के लिए नवीन शिक्षण पद्धतियों का उपयोग करने वाला सक्रिय शिक्षक एक सहारा बन जाता है, जबकि कुछ अन्य स्कूलों में छात्रों को प्रेरित और उत्साहित करने के लिए शिक्षक की क्षमता एक प्रेरक शक्ति के रूप में कार्य करती है। जीएमपीएस के मामले में जो बात एकदम हटकर दिखाई देती है वह है समुदाय की पूर्ण सहभागिता तथा बच्चे की शिक्षा में माता-पिता को दी जाने वाली सक्रिय भागीदारी एवं अपनी बात कहने की स्वतंत्रता। यद्यपि नवोदय में प्रवेश की संख्या जैसे मापदंडों से ही सफलता को मापने में सावधानी बरतनी चाहिए, लेकिन किसी समुदाय में इसके मूल्य और कार्य को समझना भी महत्वपूर्ण हो सकता है।

शेखर शर्मा का सक्रिय नेतृत्व वास्तव में सराहनीय है; उन्होंने स्पष्ट रूप से इस विद्यालय को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और अपने आस‑पास के लोगों की श्रद्धा और प्रशंसा प्राप्त की है। स्थायित्व को ध्यान में रखते हुए यह पता लगाना महत्वपूर्ण हो सकता है कि किसी स्कूल की साख अक्सर एक व्यक्ति से कैसे जुड़ी हो सकती है और यह आगे चल कर कैसे पूरे स्कूल का प्रतिनिधि बन जाता है।

आभार: मैं श्री चन्द्र शेखर शर्मा को धन्यवाद देना चाहती हूँ कि उन्होंने समय निकाल कर अपने अनुभवों और चिंतनों को विस्तार से और स्वतंत्र रूप से हमारे साथ साझा किया। मैं उन अभिभावकों के प्रति भी हार्दिक आभार प्रकट करती हूँ जो स्कूल में आए और स्कूल संबंधी अपने अनुभवों के बारे में मेरे साथ बातचीत की। इसके अलावा मैं शिक्षकों और छात्रों को भी धन्यवाद देती हूँ कि उन्होंने इतने खुलेपन और गर्मजोशी के साथ अपने स्कूल और अपनी कक्षा में मेरा स्वागत किया। अंत में मैं अपने सहयोगी श्री मुनीर सी. (सदस्य, जिला संस्थान, पिथौरागढ़, अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन) को उनके समय और प्रयासों के लिए तहे दिल से धन्यवाद देना चाहूँगी। स्कूल का दौरा करने से पहले उनके इनपुट और दौरे के बाद उनके चिंतन से मुझे तीसरे व्यक्ति का परिप्रेक्ष्य मिला जिसने मेरी समुदाय की समग्र समझ बनाने में मदद की।

लेखिका

रितिका गुप्ता, व्याख्याता, अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय