बाल्यावस्था की धारणाओं के कुछ ज़रूरी मुद्दे
बचपन क्या है? पिछले पाँच दशकों में बचपन के विमर्श में क्या बदलाव हुए हैं?
बच्चों के जीवन‑संदर्भों के साथ‑साथ उनका अपना व्यक्ति-बोध क्या होता है और हमारी धारणाओं में यह क्या जगह बनाता है? हमारे अपने जीवन और काम के दौरान हमने बचपन के विविध रूपों को कैसे जाना और स्वीकार किया है? यदि आपकी भी इन प्रश्नों में दिलचस्पी है तो आप इस संवाद में आमंत्रित हैं।
वक्ता : रश्मि पालीवाल
वक्तव्य एवं चर्चा हिन्दी में होगी I
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वक्ता का परिचय
रश्मि पालीवाल एकलव्य संस्था के साथ होशंगाबाद में 1982 से काम करती रही हैं। उन्होंने सामाजिक विज्ञान विषय के स्कूली पाठ्यक्रम के विकास, शिक्षक विकास कार्यक्रमों के निर्माण, शिक्षा साहित्य के संपादन व प्रकाशन, प्राथमिक शालाओं के बच्चों के लिए समर्थन कार्यक्रमों के संचालन, बाल विकास के सर्टिफ़िकेट कोर्स के विकास व संचालन आदि में योगदान दिया है।