कविता की सप्रसंग व्याख्या

पाठशाला पत्रिका के अंक 17 में प्रकाशित लेख के लेखक मनोज कुमार के साथ चर्चा में जुड़ें।

Pathshala Webinar 24 Jan 2024 LNJ

यह लेख कविता पढ़ाने के तरीकों पर चर्चा करता है। लेखक बताते हैं कि आज भी कविता पढ़ाने का ढंग वही है, जो आज से 4 – 5 दशक पहले था। कविताओं को पढ़ाने का पारम्परिक तरीका विद्यार्थियों को कवि के जीवन और कविता के समय से बाँध देता है।

इस परिपाटी की दूसरी दिक़्क़त यह है कि इसमें भाषा को रचना का बाहरी माध्यम मान लिया जाता है, जिसके ज़रिए कवि कुछ कहना चाहता है। प्रसंग और संदर्भ के साथ‑साथ कविता को समझने का यह पारम्परिक तरीका विद्यार्थी के कविता से जुड़ने के मौक़े कम कर देता है, और कविता को यांत्रिक तरीक़े से पढ़ने कि ओर ले जाता है। 

लेखक बताते हैं कि कवि कविता के माध्यम से’ नहीं, बल्कि कविता में’ कहना चाहता है। विद्यार्थी कविता को अपना बना सकें, अपने देश‑काल परिस्थिति के मुताबिक उसे समझ सके, यह आज़ादी पढ़ते-पढ़ाते हुए होनी चाहिए। कविता पढ़ाने के दौरान विद्यार्थी से अर्थ को गढ़ने में मदद करने वाली बातचीत होनी चाहिए। साथ ही लेख यह भी रेखांकित करता है कि कविता के पाठक को सहृदय होना चाहिए। 


लेखक व प्रस्तुतकर्ता : मनोज कुमार

चर्चा करेंगे : खजान सिंह 

चर्चा हिन्दी में होगी। 

लेख यहाँ पढ़ें : https://​bit​.ly/​3​v​Bpc8y

चर्चा में शामिल हो :

वक्ताओं का परिचय

मनोज कुमार वर्तमान में अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के शिक्षा संकाय में अध्यापक हैं। दिगन्तर’, जयपुर और रूम टू रीड’ इंडिया जैसी संस्थाओं के साथ काम करते हुए आपने प्रारम्भिक शिक्षा में ज़मीनी स्तर पर काम किया है। शिक्षा, साहित्य, संस्कृति और समसामयिक मसलों पर इनकी कई रचनाएँ हिन्दी और अँग्रेज़ी में प्रकाशित हुई हैं। इन्होंने बच्चों के लिए भी छिटपुट रचनाएँ लिखी हैं जो पत्रिकाओं में या पिक्चर बुक के रूप में प्रकाशित हुई हैं।

खजान सिंह ने हिन्दी साहित्य व पत्रकारिता और जनसंचार में स्नातकोत्तर किया है । वे प्रारम्भिक शिक्षा और शिक्षक शिक्षा के क्षेत्र में कई वर्षों से काम हैं। उन्हें पाठ्यचर्या, पाठ्यक्रम, पाठ्यपुस्तक लेखन से जुड़े रहे हैं , उन्हें बच्चों के लिए पठन सामग्री निर्माण का लंबा अनुभव है। उनकी चकमक, साइकिल, युगवाणी, प्रवाह, अमर उजाला आदि पत्र ‑पत्रिकाओं में रचनाएँ व लेख प्रकाशित होते रहते हैं। विगत एक दशक से अज़ीम प्रेमजी फ़ाउण्डेशन, उत्तरकाशी, उत्तराखंड में भाषा के रिसोर्स पर्सन के रूप में कार्य कर रहे हैं।

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