क्रिटिकल पेडागॉजी और बहुभाषी शिक्षण
यह पेडागॉजी कैसे सम्भव हो पाती है? इसमें बच्चों की भाषाओं को शामिल कर पाने की क्या और क्यों ज़रूरत है?

क्रिटिकल पेडागॉजी का उत्पीड़न और अन्याय से लड़ने के औज़ार की तरह शिक्षाशास्त्र की एक धारा के रूप में विकास हुआ। इसके तरह न्यायसंगत, बराबर और लोकतांत्रिक समाज की नींव को मज़बूत करने कल्पना की जाती है। यह पेडागॉजी कैसे सम्भव हो पाती है? इसमें बच्चों की भाषाओं को शामिल कर पाने की क्या और क्यों ज़रूरत है? ऐसे तमाम प्रश्नों पर यह संवाद रोशनी डालने की कोशिश करेगा।
वक्ता : शिवानी नाग
वक्तव्य एवं चर्चा हिन्दी में होगी I
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वक्ता का परिचय
शिवानी नाग, दिल्ली स्थित डॉ. बी. आर. अम्बेडकर विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ़ एजुकेशन स्टडीज़ में सहायक प्रोफ़ेसर हैं। उनका शोध स्कूल और उच्च शिक्षा में हाशिए पर रहने वाले लोगों के बहिष्कार और उनके अनुभव व भागीदारी पर केंद्रित है।