अध्यापक अनुपस्थिति प्रवृत्ति : एक अध्ययन
किस हद तक और किन कारणों से अध्यापक स्कूलों में ‘उपस्थित नहीं’ हैं
अभी हाल के वर्षों में सरकारी प्राथमिक स्कूलों में अध्यापक अनुपस्थिति की प्रवृत्ति की उच्च दर ने शोधार्थियों और नीति निर्माताओं दोनों का ही ध्यान खींचा है और इसे एक गम्भीर मुद्दे की तरह लिया गया है। स्पष्ट रूप से नीतिगत प्रयास इस मुद्दे को हल करने की तरफ रहे हैं पर मुख्यतः उनका नजरिया यह रहा है कि अध्यापकों पर पहले से ज्यादा नियंत्रण करके इसे ठीक किया जा सकता है। उदाहरण के लिए अभी हाल ही में, सरकार ने अपने आर्थिक सर्वेक्षण में, अध्यापक अनुपस्थिति की प्रवृत्ति पर लगाम कसने के लिए बायोमेट्रिक प्रणाली का सुझाव दिया। (भारत सरकार 2017)।
हालाँकि सरकारी स्कूलों के अध्यापक कक्षा में मौजूद नहीं होते इसके वाजिब कारण हैं, पर अध्यापकों के स्तर पर लापरवाही से कहीं ज्यादा ये व्यवस्थागत मसलों से सम्बन्धित हैं जिनके चलते अक्सर उन्हें दूसरे कामों को हाथ में लेना पड़ता है। सम्बन्धित अध्ययन दरअसल इन बातों को दर्ज करते हैं, और अक्सर इसे लापरवाही का नाम देते हैं। जिसे बिना कारण के अनुपस्थिति कहा जा सकता है वह अक्सर बहुत ही कम देखी जाती है। यह सिर्फ 4 से 5 प्रतिशत ही है (मुरलीधरन 2016 )।
जिसे बिना कारण के अनुपस्थिति कहा जा सकता है वह अक्सर बहुत ही कम देखी जाती है। यह सिर्फ 4 से 5 प्रतिशत ही है।
इस अध्ययन में हमने अध्यापक अनुपस्थिति की प्रवृत्ति के मुद्दे को गहराई से समझने के लिए-
ये स्कूल उन इलाकों के हैं जहाँ अज़ीम प्रेमजी फाउण्डेशन कार्यरत है। हमने इन स्कूलों को अपने अध्ययन में सिर्फ मुद्दे से जुड़े आँकड़े जुटाने के लिए नहीं बल्कि अध्यापकों के साथ समय बिताने और इस बात को समझने के लिए भी लिया कि ऐसी परिस्थिति में, जहाँ अनुपस्थिति की प्रवृत्ति और लापरवाही अपेक्षित हो सकती है, वहाँ अध्यापक दरअसल उपस्थिति और शिक्षण मापदण्ड क्यों और कैसे बनाए रखते हैं।
अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि, अध्यापकों की अनुपस्थिति की प्रवृत्ति, जिसे ‘बिना कारण के अनुपस्थित रहना’कहा जाए वह 2.5 प्रतिशत है। हालाँकि अध्ययन के लिए लिया गया हमारा यह सैम्पल सांख्यिकीय रूप से पूरे देश का प्रतिनिधित्व नहीं करता, पर यह संख्या व आकार में लगभग उतना ही है जितना दूसरे अध्ययनों में। हमने कक्षा में कुल जमा अनुपस्थिति के कुछ सम्भावित सह-सम्बन्धों की पड़ताल भी की और पाया कि मानक तर्कों के कारण कुछ स्पष्ट व्यवस्थित अन्तर हैं।
फिर हमने कुछ केस स्टडीज कीं। हमने उन अध्यापकों को रेखांकित किया है जो इन परिस्थितियों के बावजूद व्यापक रूप से फैली नकारात्मक छवि को तोड़ते हुए उसके विपरीत खड़े हैं।
हमने इस बात के साथ अपना निष्कर्ष रखा है कि उन बातों के लिए अध्यापकों पर उँगली उठाना और दोषारोपण करना, जो कि उनके नियंत्रण से परे हैं या व्यवस्थागत मसले का परिणाम हैं,नुकसानदायक है और सरकारी स्कूली प्रणाली पर यह विपरीत प्रभाव डालता है।