अनिश्चितता के बीच राह जुटाने की कोशिश

कोरोना दो साल की यात्रा पूरी करने वाला है। बहुत कठिन समय है यह। खोनेपन और पानेपन के अहसासों के बीच हाथ में आई रेत और हाथ से फिसलती रेत सा कुछ।

इस बीच जीवन को दृष्टि देने वाली शिक्षा ने भी बहुत झोंके खाए हैं। एक वह शिक्षा जिसे बचाने और फिर से खड़ा कर देने की बात है। शिक्षा के बड़े उपक्रम के साथ खड़ा एक बड़ा सा प्रश्नवाचक भी। क्या समय है शिक्षा खुद को पुनर्परिभाषित करे। क्या यह शिक्षा के लिए, स्कूल के लिए और शिक्षक के लिए एक मौका है? बाजार और तकनीक के अंधाधुंध में हमारी आँखें चौधियायी हुई हैं। क्या हम इन आँखों में नए ख़्वाब ला सकते हैं?

इन्हीं बिन्दुओं के इर्द‑गिर्द बात होगी शैक्षिक प्रवाह के वेबिनार में-

वक्ता- खजान सिंह

बातचीत करेंगे- भास्कर उप्रेती

चर्चा हिंदी में होगी.